Bobby Scandal: बॉबी हत्याकांड का रहस्य? एक लड़की की कत्ल छुपाने के लिए पूरी सरकार नप जाती

पूर्व IPS अधिकारी की किताब में बॉबी कांड का खुलासा
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कोलकाता: पूनम की रात में निशा श्वेत और खूबसूरत होती है। श्वेतनिशा बेहद सुंदर थी, इसलिए उसे यह नाम दिया गया था। ये लाइनें पूर्व IPS अधिकारी किशोर कुणाल ने अपनी किताब के जरिए बॉबी उर्फ श्वेतनिशा की खूबसूरती को बताने की कोशिश की है।

दरअसल ये कहानी साल 1983 की है। जब बिहार विधानसभा में काम करने वाली एक लड़की की मौत होती है और महज चार घंटे के अंदर उसे चुपचाप दफना दिया जाता है। वैसे तो श्वेतनिशा हिंदू थी लेकिन दफनाने की कहानी भी अजीब है। ये खबर एक अखबार के हाथ लगती है और फिर हरकत में आते हैं उस दौर के सबसे तेजतर्रार कहे जाने वाले IPS ऑफिसर किशोर कुणाल।

इस घटना की तफ्तीश जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, एक-एक कर परतें खुलती हैं और सामने आने लगते हैं कई माननीयों के नाम। तब पता चलता है कि श्वेतनिशा उर्फ बेबी उर्फ बॉबी के कई रसूख वाले लोगों से संबंध थे। तब मामला सिर्फ बिहार तक नहीं रहता बल्कि पूरे देश में आग तरह फैलता है और पुलिसवालों पर दबाव होता है बस मामले को जल्द से जल्द निपटाया जाए। लेकिन, कहानी की करवट थोड़ी चलने वाली थी। सत्ता के हाथ न्याय का गला किस कदर दबोचा जाता है ये किस्सा उसकी एक बानगी है? क्या था बिहार का बॉबी हत्याकांड, जिसने पूरे देश को हिला दिया था? कैसे एक पुलिस अफसर ने इस हत्याकांड की परतें खोलीं पर उसके हाथ खाली रह गए? चलिए, इस मामले को थोड़ा तफ्तीश से समझते हैं?

क्या था बॉबी स्कैंडल?

किस्से की शुरुआत होती है 11 मई 1983 से होती है। जब बिहार की राजधानी पटना में लोग नींद से जागते और वहां के दो मशहूर अखबारों के फ्रंट पेज पर छपी एक खबर को पढ़कर सन्न रह जाते हैं। उन दोनों अखबारों ने छपा था कि बॉबी की संदिग्ध हालात में मौत, लाश को कहीं छिपाया गया। हैरानी की बात ये थी कि इस मौत के बारे में ना तो कोई एफआईआर लिखी गई थी, और ना ही किसी कानूनी कार्रवाई का जिक्र किया गया था।

जिस बॉबी की मौत की खबर ने बिहार के सियासी गलियारों में भूचाल ला दिया था। उस बॉबी का असली नाम श्वेता निशा त्रिवेदी था। वह बिहार विधान परिषद की तत्कालीन सभापति और कांग्रेस की वरिष्ठ नेता राजेश्वरी सरोज दास की गोद ली गई बेटी थी। रिपोर्टों के मुताबिक 35 साल की श्वेता इतनी खूबसूरत थी कि पहले उसका निकनेम बेबी था लेकिन राजकपूर की हिट फिल्म बॉबी के रिलीज होने के बाद उसका नाम बेबी से बदल कर बॉबी कर दिया गया था। बॉबी बिहार की विधान सभा में ही टाइपिस्ट का काम करती थी। आगे जाकर ये केस बॉबी हत्याकांड नाम से ही मशहूर हो गया। इसलिए हम भी बॉबी नाम का ही यूज कर रहे हैं।

... तो उस समय का सबसे बड़ा सवाल था कि जल्दबाजी में बॉबी के शरीर को दफनाया क्यों गया और कहां दफनाया गया? लोगों के लिए यह एक कानाफूसी की बड़ी कहानी बन गई थी। तब उस वक्त के जाने-माने पुलिस अधिकारी किशोर कुणाल ने इस केस में दिलचस्पी दिखाई क्योंकि वे तब पटना के तत्कालीन SSP थे। इसे लेकर साल 2021 में उनकी लिखी एक किताब 'दमन तक्षकों का' आई थी।

इस किताब में किशोर कुणाल लिखते हैं कि अखबार की खबर के आधार पर केस की जांच शुरू की गई। सबसे पहले बॉबी उनकी माताजी राजेश्वरी सरोज दास से पूछताछ हुई तो उन्होंने बताया कि 7 मई की शाम बॉबी अपने घर से निकली और फिर देर रात वापस आई। घर आने के बाद उसके पेट में दर्द हुआ और फिर खून की उल्टियां होने लगीं। जिसके बाद जल्दी-जल्दी में पटना मेडिकल कॉलेज यानि पीएमसीएच ले जाया गया। जहां जांच के बाद उसे घर भेज दिया गया फिर उसकी मौत हो गई। राजेश्वरी सरोज दास की बातों से लगा कि कुछ संदिग्ध है। क्योंकि बॉबी की मौत के बाद दो रिपोर्ट तैयार की गई थीं एक जिसमें कहा गया था कि मौत की वजह इंटरनल ब्लीडिंग है, जबकि दूसरी रिपोर्ट में कहा गया था कि बॉबी की मौत हार्ट अटैक से हुई है।

वहीं एक में मौत की टाइमिंग सुबह के 4 बजे थी तो दूसरी में साढ़े चार बजे। मौत की असली वजह क्या थी, और समय क्या था? इसकी सच्चाई जानने के लिए किशोर कुणाल के पास बस यही चारा था कि वो बॉबी के शरीर को निकालकर पोस्टमार्टम करवाएं। इसके बाद जब बॉबी के शरीर से विसरा निकालकर जांच की गई तब जांच में 'मेलेथियन' नाम का जहर पाया गया। इस रिपोर्ट ने पुलिस के शक को हकीकत में बदल दिया और तब साफ हो चुका था कि बॉबी का कत्ल किया गया था।

बॉबी की हत्या हुई थी?

अब किशोर कुणाल इस केस में दिलचस्पी दिखाने लगे और पता करने में जुट गए कि बॉबी को जहर किसने दिया था? जब बॉबी के बैकग्राउंड की तफ्तीश की गई तो पता चला कि बॉबी का रसूखदार लोगों के साथ उठना-बैठना था। कई मीडिया रिपोर्ट ये कहती है कि उनके कई छोटे-बड़े नेताओं से भी संबंध थे, अब संबंध कैसे थे वो आगे कहानी के माध्यम से आप खुद समझ सकते हैं। वहीं कई रिपोर्ट ये कहता है कि जब 1978 में बॉबी को विधानसभा में नौकरी मिली तो वहां एक विशेष प्राइवेट एक्सचेंज बोर्ड लगाया गया था, सिर्फ इसलिए ताकि बॉबी को टेलीफोन ऑपरेटर की नौकरी मिल जाए और बाद में वो बोर्ड बंद कर दिया गया और बॉबी को टाइपिस्ट के नौकरी मिल गयी।

इसी विधानसभा में नौकरी के दौरान उसकी मुलाकात कई नेताओं और विधायकों से हुई। वैसे तो बॉबी अपनी मां जो विधान परिषद सभापति थी, वो उनके साथ ही सरकारी आवास में रहती थी। उसी सरकारी आवास से लगा एक आउट हाउस हुआ करता था जहां दो लड़के रहते थे। जब पुलिस ने उनसे पूछताछ की थी तब उन लड़कों ने बताया था कि 7 मई की रात बॉबी से मिलने के लिए एक आदमी आया था। इस शख्स का नाम था रघुवर झा। रघुवर झा कोई आम लड़का नहीं था बल्कि उस वक्त के कांग्रेस की एक बड़ी नेता राधा नंदन झा का बेटा था। वैसे रघुवर झा के बारे में उन्हें बॉबी की मां राजेश्वरी सरोज दास ने भी बताया था। उनका कहना था कि रघुवर झा ने बॉबी को एक दवाई दी थी, जिसके बाद ही उसकी तबीयत बिगड़ने लगी थी और बाद में उसकी मौत हो गई।

कुछ रिपोर्ट में ये बताया गया है कि बॉबी ने चूंकि ईसाई धर्म अपना लिया था, इसलिए उसे दफना दिया गया था। इसी वजह से उनकी कब्र को निकालकर विसरा की जांच की गई थी। वैसे इस मामले में जैसे ही कांग्रेस नेता के बेटे का नाम सामने आया तो मामले ने तूल पकड़ लिया। बिहार ही नहीं पूरे देश में हंगामा शुरू हो गया। पुलिस की जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ रही थी, वैसे-वैसे सत्ता के गलियारों में हंगामा बढ़ता जा रहा था क्योंकि बॉबी की हत्या के मामले में सत्ताधारी पार्टी के कई छोटे-बड़े नेता भी जुड़ते जा रहे थे। इस खुलासे की वजह से कांग्रेस पार्टी पर विपक्ष का दबाव भी बढ़ता जा रहा था।

कई मीडिया रिपोर्ट में ये बताया जाता है कि पुलिस एक बड़े कांड का खुलासा करने वाली थी कि तभी सत्ताधारी पार्टी के तकरीबन 4 दर्जन विधायक और मंत्री बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र से मिलने जा पहुंचे और उन पर बॉबी हत्याकांड की जांच सीबीआई के हवाले किए जाने का दबाव बनाने लगे।

साथ ही विपक्ष के नेता कर्पूरी ठाकुर भी  इस मामले में बार- बार सीबीआई जांच की मांग कर रहे थे। आईपीएस किशोर कुणाल अपने किताब में लिखते हैं कि इस केस में उन पर भी कई नेता व सीनियर अधिकारी दवाब बना रहे थे। ऐसे में एक दिन किशोर कुणाल के पास सीधे मुख्यमंत्री का कॉल आया और जगन्नाथ मिश्र तब बिहार के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। कुणाल लिखते हैं कि मुख्यमंत्री ने उनसे पूछा, ये बॉबी कांड का मामला क्या है?

कुणाल ने उन्हें जवाब दिया, सर कुछ मामलों में आपकी छवि अच्छी नहीं है, किंतु चरित्र के मामले में आप बेदाग हैं। इस केस में मत पड़िए, यह ऐसी आग है कि आपका हाथ भी जल जाएगा। इसलिए इससे अलग रहें। इसके बाद मुख्यमंत्री ने फोन काट दिया। इस बीच 25 मई, 1983 को जन्नाथ मिश्रा की सरकार ने इस केस सीबीआई को सौंप दिया गया।

सीबीआई ने पूरा खेल ही अलग कर दिया?

जब सीबीआई के हाथ में ये केस सौंपी गई तो सीबीआई ने पूरे खेल ही बदल डाला, सीबीआई ने इसे कत्ल का नहीं बल्कि आत्महत्या का मामला बता दिया। सीबीआई ने अपने रिपोर्ट में बताया कि बॉबी अपने प्रेमी से मिले धोखे से परेशान थी। इसलिए उसने सेंसिबल नामक टेबलेट खा लिया था। रिपोर्ट में ये तक लिखा गया कि कांग्रेस नेता का बेटा रघुवर झा इस मामले में निर्दोष है और घटना के दिन वो एक शादी में शिरकत करने गया था। वहीं बॉबी की मां को ही सीबीआई ने लपेटे में ले लिया और रिपोर्ट में लिखा कि बॉबी से जुड़े खत और कई दस्तावेज को उनकी मां ने जला दिए ताकि बड़े लोगों का इस केस में नाम ना आए।

अब सीबीआई की जब रिपोर्ट सामने आई तो हंगामा हो गया क्योंकि कई नेताओं को क्लीन चिट मिल चुकी थी। तब पटना की फॉरेंसिक लैब की तरफ से भी सवाल उठे कि पोस्टमार्टम में सेंसिबल टैबलेट का कोई अंश नहीं था और बॉबी की मौत 'मेलेथियन' जहर से हुई थी। इस पर तब सीबीआई जवाब देते हुए कहता है कि गलती से लेबोरेटरी में रखे किसी दूसरे विसरा से बॉबी के विसरा में मेलेथियन चला गया होगा। वैसे लाल फीताशाही के कागजों से ऊपर उठकर देखें तो इस चर्चित कांड, कानून की फाइलों में एक बड़ा राज बनकर दफन हो गया। बॉबी का कत्ल कब, क्यों और किसने किया था? ये अब कभी पता नहीं चल पाएगा।

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