क्या है लाक्षागृह विवाद जिसपर 53 साल बाद हिंदू पक्ष को मिला अधिकार ?

क्या है लाक्षागृह विवाद जिसपर 53 साल बाद हिंदू पक्ष को मिला अधिकार ?
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बागपत: उत्तर प्रदेश के बागपत में जिला एवं सत्र न्यायालय के सिविल जज जूनियर डिवीजन (प्रथम) शिवम द्विवेदी ने सोमवार(05 जनवरी) को जिले के ऐतिहासिक टीला 'महाभारत के लाक्षागृह' को शेख बदरुद्दीन की दरगाह व कब्रिस्तान बताने वाली मुस्लिम पक्ष की ओर से दायर करीब 54 साल पुरानी याचिका को खारिज कर दिया। अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा कि बरनावा के प्राचीन टीले पर न तो कोई कब्रिस्तान है और न ही कोई दरगाह, बल्कि वहां सिर्फ लाक्षागृह ही है। उन्होंने कहा कि मुस्लिम पक्ष लाक्षागृह की 100 बीघे जमीन को कब्रिस्तान और दरगाह बताकर उस पर कब्जा करना चाहता है। फैसले के अनुसार, विवादित स्थल पर हिंदू पक्ष का अधिकार है और मुस्लिम पक्ष को वहां से हटना होगा।

अदालत में पेश सबूतों पर आया निर्णय

हिन्दू पक्ष के वकील तोमर ने कहा कि हमने लाक्षागृह के सभी सबूत अदालत में पेश किए, जिसके आधार पर अदालत ने मुस्लिम पक्ष की उस याचिका को खारिज कर दिया कि लाक्षागृह शेख बदरुद्दीन की दरगाह और कब्रिस्तान था।

क्या है मामला ?

तोमर ने यह भी बताया कि बरनावा के रहने वाले मुकीम खान ने वर्ष 1970 में वक्फ बोर्ड के पदाधिकारी की हैसियत से मेरठ की सरधना की अदालत में दायर किए वाद में लाक्षागृह गुरुकुल के संस्थापक ब्रह्मचारी कृष्णदत्त महाराज को प्रतिवादी बनाते हुए दावा किया था कि बरनावा स्थित लाक्षागृह टीले पर शेख बदरुद्दीन की मजार और एक कब्रिस्तान मौजूद है और वक्फ बोर्ड का इस पर अधिकार है। वादी की ओर से अधिवक्ता शाहिद खान मुकदमे की पैरवी कर रहे थे। मेरठ के बाद यह मामला बागपत की अदालत में चल रहा था। वहीं, प्रतिवादी की ओर से अदालत में दावा किया गया कि प्राचीन टीले पर दरगाह या कब्रिस्तान का सवाल ही नहीं उठता, यह महाभारत काल का लाक्षागृह है, सुरंग, प्राचीन दीवारों आदि से जिसकी गवाही आज भी दी जाती है। इस मामले से संबंधित मुकीम खान और कृष्णदत्त महाराज दोनों का निधन हो चुका है। इस बीच, जब शाहिद खान से संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा कि वे ऊपरी अदालत में जाएंगे और अपना मामला पेश करेंगे।

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